शनिवार, 28 जुलाई 2012

बीटी कोटन के सर्जनात्मक बाल मजदूर

गुजरात के बीटी कोटन के खेतों में हर साल जुलाई से
 सप्टेम्बर की मौसम में हजारों आदिवासी बच्चों को 
मजदूरी के काम में लगाया जाता है. 
 




















उन बच्चों में नाबालिग बच्चियां भी होती है, जिनका
यौन शोषण गुजरात के बुद्धिजीवियों, मीडीया तथा
शासक वर्ग के लिए शर्म की बात नहीं




पिछले साल यह बच्चे अपनी सर्जनात्मकता के नये
आयाम की तलाश में निकल पडे सांढोसी गांव में





सुबह पांच बजे से मजदूरी की चक्की में पिसते हाथों ने 
थाम लिया रंगो की दुनिया का रोमांच

यह महज संयोग नहीं था कि ज्यादातर बच्चों ने
कागज़ पर चित्रण किया हाथ का, जो उनके अस्तित्व का
मानो एक पर्याय ही था
हिन्दु कट्टरपंथी संगठन ऐसे ही बच्चों के हाथ में त्रिशुल 
थमाकर नकारात्मक हिंसा के रास्ते पर धकेलते है
 लेकिन उन्हे चाहिए सर्जनात्मक अभिव्यक्ति तथा अपनी
मानवीय गरीमा की पहचान

बनासकांठा तथा साबरकांठा जिल्लों के बहुत सारे आदिवासी
बहुल गांवों के बच्चे बीटी कोटन की मजदूरी के चपेट में
एक बार आ जाते हैं तो वापस स्कुल नहीं जाते
इस सर्जनात्मक शिबिर का आयोजन किया था दलित
हक रक्षक मंच तथा आदिवासी सर्वींगी विकास संघ ने